“किसानों की मेहनत का नहीं होगा अब नुक़सान, सरकार खरीदेगी हल्दी – 90 रु. का पक्का है दाम!”
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने हल्दी खरीद के लिए पंजीकरण प्रपत्र जारी किया!

‘हिमाचल हल्दी’ को मिली सरकार की सौगात — किसानों की आर्थिकी को संजीवनी देने वाली ऐतिहासिक पहल
शिमला, 8 अप्रैल —2025
हिमाचल की धरती से एक नई क्रांति की शुरुआत हुई है। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आज एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए प्राकृतिक खेती से उगाई गई हल्दी की खरीद के लिए पंजीकरण प्रपत्र जारी किए। यह न केवल किसानों की मेहनत को सम्मान देने वाला निर्णय है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने वाला एक निर्णायक प्रयास भी है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में घोषित इस योजना के तहत राज्य सरकार प्राकृतिक विधि से उगाई गई हल्दी को 90 रुपये प्रति किलो के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदेगी। यह एक ऐसी पहल है जो किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा प्रदान करेगी और प्राकृतिक खेती को जनांदोलन में बदलने की ओर एक ठोस कदम सिद्ध होगी।
मुख्यमंत्री ने बताया कि पंजीकृत किसानों से खरीदी गई कच्ची हल्दी को हमीरपुर स्थित स्पाइस पार्क में आधुनिक तकनीक से प्रोसेस किया जाएगा और इसका विपणन ‘हिमाचल हल्दी’ ब्रांड के नाम से किया जाएगा। यह ब्रांड राज्य की विशिष्टता का प्रतीक बनेगा, और गुणवत्ता की दृष्टि से एक नई पहचान गढ़ेगा। मुख्यमंत्री सुक्खू ने कहा, “यह पहली बार होगा जब राज्य सरकार किसानों से सीधी हल्दी खरीद करेगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिकी सशक्त होगी और लोगों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।” राज्य सरकार की इस योजना का उद्देश्य केवल हल्दी तक सीमित नहीं है। इससे पहले प्राकृतिक पद्धति से उगाई गई गेहूं और मक्की को भी समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है — गेहूं को 60 रुपये प्रति किलो और मक्की को 40 रुपये प्रति किलो पर। इसके अलावा, दूध के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी 21 रुपये प्रति लीटर तक की बढ़ोतरी की गई है। गाय का दूध अब 51 रुपये प्रति लीटर और भैंस का दूध 61 रुपये प्रति लीटर पर खरीदा जा रहा है।
प्राकृतिक खेती का भविष्य: हल्दी बन रही किसानों की नई उम्मीद
प्रदेश में वर्तमान में 2,042.5 हेक्टेयर क्षेत्र में हल्दी की खेती की जा रही है, जिससे हर साल लगभग 24,995 मीट्रिक टन हल्दी का उत्पादन होता है। हमीरपुर, कांगड़ा, बिलासपुर, सिरमौर, मंडी और सोलन जिले इस क्षेत्र में अग्रणी हैं। कोविड-19 के बाद हल्दी की औषधीय महत्ता ने इसकी मांग को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में नई ऊँचाइयाँ दी हैं। हल्दी की एक विशेषता यह भी है कि इसे जंगली जानवर — खासतौर पर बंदर — नुकसान नहीं पहुंचाते। इसकी खेती में मेहनत कम लगती है और कटाई के बाद इसकी शेल्फ लाइफ भी लंबी होती है, जिससे यह हिमाचल के किसानों के लिए एक अत्यंत उपयोगी फसल बन गई है।
इस अवसर पर तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी, विधायक विनोद सुल्तानपुरी, वन विकास निगम के उपाध्यक्ष केवल सिंह खाची तथा कृषि सचिव सी. पालरासू भी मौजूद रहे। यह योजना न केवल एक सरकारी घोषणा है, बल्कि हिमाचल के किसान के सपनों को संबल देने वाली एक सुनहरी शुरुआत है। ‘हिमाचल हल्दी’ केवल एक ब्रांड नहीं, बल्कि हिमाचल की मिट्टी, मेहनत और माटी के गर्व का प्रतीक बनेगी।