महाकुंभ के प्रति हर नेरेटिव का जवाब है प्रयागराज आयोजित कुंभ : डॉ. मामराज पुंडीर
सांस्कृतिक एकता और आस्था का महापर्व

हिमाचल न्यूज़ डेली (Himachal News Daily)
शिमला, 21 फरवरी, 2025 । महाकुंभ मेला न केवल आस्था का संगम है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक समृद्धि का एक अनूठा प्रतीक भी है। इस बार के महाकुंभ में शामिल होना एक आध्यात्मिक यात्रा की अनुभूति थी, जो थकावट से परे थी। शिमला से 7 फरवरी को शुरू हुई यात्रा के बाद, 24 घंटे से अधिक के सफर के बावजूद कुंभ स्नान करने तक किसी भी प्रकार की थकान महसूस न होना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
144 वर्षों के बाद आयोजित इस ऐतिहासिक महाकुंभ में शामिल होना एक दुर्लभ सौभाग्य था। सनातन और भारतीय संस्कृति की गहराई को समझने का यह अवसर था, जिसने यह साबित किया कि कुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि सनातन धर्म का वैश्विक संदेशवाहक भी है। यह आयोजन, जो संगम पर 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है, भारत की धार्मिक आस्था और संगठनात्मक क्षमता का प्रमाण है।
महाकुंभ में विभिन्न धार्मिक समुदायों की भागीदारी इस तथ्य को दर्शाती है कि यह आयोजन किसी धर्म विशेष के विरुद्ध नहीं है। यह एक ऐसा आध्यात्मिक मंच है जहाँ सभी को मोक्ष प्राप्ति का अवसर मिलता है। कुछ विवादों के बावजूद, यह मेला विश्व के सबसे बड़े समागमों में से एक है, जिसे 55 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने अब तक देखा है और यह संख्या 70 करोड़ तक पहुँच सकती है।
सरकार और प्रशासन ने इस विशाल आयोजन को सफल बनाने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए हैं। सार्वजनिक सुविधाओं, सुरक्षा व्यवस्था और प्रबंधन कौशल का ऐसा उदाहरण पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायक है। महाकुंभ का आयोजन भारत की प्रशासनिक क्षमता और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। यह आयोजन हज से सौ गुना बड़ा है और इसे सुचारू रूप से संपन्न कराना एक बड़ी उपलब्धि है।
इस महाकुंभ ने यह साबित कर दिया है कि भारत का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आधार कितना मजबूत है। देश और दुनिया के लिए यह आयोजन एक प्रेरणा है, जो यह दर्शाता है कि भारत अपनी परंपराओं और विरासत को संरक्षित रखते हुए आधुनिकता की ओर भी अग्रसर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में इस कुंभ को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाने में प्रशासन ने उल्लेखनीय कार्य किया है।
जो श्रद्धालु महाकुंभ में गए और सुरक्षित लौटे, उन्होंने उस रूढ़िवादी धारणा को तोड़ दिया, जिसमें कुंभ को केवल भीड़ और अव्यवस्था से जोड़कर देखा जाता था। महाकुंभ श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समागम है, जिसने भारत की समावेशी और सहिष्णु परंपरा को पुनः स्थापित किया है।