ध्यान भारत की वैदिक सनातन पद्धति का विशुद्ध अंग है- स्वामी विज्ञानानंद जी
हिमाचल न्यूज़ डेली (Himachal News Daily)
शिमला, 08 जुलाई, 2024 । दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा विश्व शांति की मंगल कामना के उद्देश्य से स्थानीय अग्रवाल धर्मशाला, शिमला में विलक्षण योग और ध्यान साधना शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान की ओर से “श्री आशुतोष महाराज जी” के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने बताया कि आज 21वीं सदी के वैज्ञानिक एवं प्रगतिवादी युग में मनुष्य के पास भौतिक सुख सुविधाएं तो हैं परंतु मानसिक शान्ति का अभाव होने के कारण मनुष्य अशांत एवं अवसाद से ग्रसित है।
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“ध्यान” को मानसिक शान्ति का उपाय बताये हुए स्वामी जी ने बताया कि हमारी सनातन भारतीय संस्कृति की मेधा प्रज्ञा इस तथ्य को सर्वसम्मति से स्वीकार करती है की ध्यान से ही मनुष्य मानसिक शान्ति को प्राप्त कर सकता है। परन्तु विडम्बना है कि आज मूलतः सम्मोहन क्रिया को ही ध्यान का अंग स्वीकार कर लिया जाता है। जब कि ऐसा नहीं है। ध्यान तो वैदिक सनातन पद्धति का विशुद्ध अंग है। जो की “ध्येय और ध्याता” के संयोग से पूर्ण होता है। समस्त धार्मिक ग्रंथों में ईश्वर को प्रकाश स्वरुप बताया गया है जैसे कि वेदों में ईश्वर को “आदित्यवर्णम्” भाव की सूर्य स्वरुप बता कर अंतः करण में उसके प्रकाश स्वरुप दर्शन की बात की गई है। जिसे “गायत्री मन्त्र में “भर्गो देवस्य धीमहि” के उदघोषस्वरूप बताया गया है। जिसमे पूर्ण सद्गुरु शरणागति साधक को ब्रह्म ज्ञान की दीक्षा प्रदान कर उसकी दिव्य दृष्टि खोल कर उसे ध्येय स्वरुप ईश्वर के प्रकाश स्वरुप का दर्शन करवाते हैं। जब फिर आरम्भ होती है ध्यान की शाश्वत प्रक्रिया। जिससे ध्याता अपने भीतर सत् चित्त आनंद को प्राप्त करता है। ईश्वर से एकात्म हुए साधक का हर दिन हर पल एक दिव्य पर्व से जीवन का गर्व बन जाता है।